अमिताभ पाण्डेय
हमारा देश भारत दुनिया के सबसे प्रमुख लोकतात्रिंक देशों की सूची में शामिल है। हमारे देश की चुनाव प्रक्रिया को लेकर दुनिया भर में लोकतंत्र में भरोसा रखने वालों की बडी रूचि है। दुनियाभर के राजनीतिक घटनाक्रमों पर नजर रखने वाले लोग यह जानना समझना चाहते हैं कि लगभग 100 करोड की आबादी वाले भारत में  बडे पैमाने पर हिंसा किये बगैर सत्ता का हस्तातंरण राजनीतीक दलों के बीच कैसे होता है। कैसे विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि चुनाव लडकर सत्ता पर काबिज हो जाते हैं और कैसे सत्ता पर बने रहने वालों को जनता मतदान के माध्यम से यदि चाहे तो सत्ता से बेदखल कर देती है। भारत में सांसद-विधायक से लेकर सरपंच और पार्शद तक के चुनाव की जो प्रक्रिया है वह हमें भले ही सहज ,सरल लगे लेकिन विदेशी लोगों को यह सब बडा आष्चर्यजनक लगता है। विदेशी लोग यह देख-सुनकर हैरान हो जाते हैं कि भारतीय शासन व्यवस्था में जनप्रतिनिधियों के अधिकारों को स्थानान्तरित करने का काम मतदान के आधार पर कैसे पूरा हो जाता है। भारत में केवल चुनाव प्रक्रिया द्वारा ही 850 मिलीयन से ज्यादा मतदाता अपने मत अधिकार का उपयोग करके अपने जनप्रतिनिधि का चयन करते हैं। हमारे देश की चुनाव प्रक्रिया को जानने समझने के लिए विदेशी राजनेताओं, वहां की शासन व्यवस्था से जुडे बडे अधिकारियों के दल लगातार आते रहते हैं ।

इस चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए शासन  व्यवस्था में लगातार बेहतर सुधार के लिए प्रयास चलते रहते हेैं। इसके लिए भारतीय संविधान में भी नियमों,कानूनों का प्रावधान किया गया है। इसके बाद भी संपूर्ण प्रक्रिया को पूरी तरह दोशमुक्त बनाना अब तक संभव नहीं हो सका । चुनाव प्रक्रिया को लेकर कई तरह की समस्याएं ,कमियां सामने आती रहती हैं।  आजादी के बाद समाज के हर वर्ग में जो अनुचित परम्पराएं बढी भ्रष्टाचार उनमें से एक है। भ्रष्टाचार ने चुनाव की प्रक्रिया को भी प्रभावित किया है। अपने देश की आजादी की 71 वीं वर्शगांठ मनाते हुए हमें यह विचार जरूर करना चाहिये कि हमारी चुनाव प्रक्रिया में धनबल, बाहुबल का प्रभाव कम क्यों नहीं हो पा रहा है। चुनाव में अपराधी प्रवृति के लोगों की भागीदारी क्यों और कैसे लगातार बढ रही है। अपराधी मानसिकता के साथ बेहिसाब धन लेकर  चुनाव मैदान में उतरने वाले उम्मीदवारों ने पूरी चुनाव प्रक्रिया को दूशित कर दिया है। दरअसल यह बेहिसाब धन उन बडे औघोगिक घरानों और कम्पनियों का है जो राजनीतिक दलों को चुनाव लडने के लिए उपलब्ध करवाते है। इसे सीधी भाशा में चुनावी चंदा कहा जाता है। यह चुनावी चंदा राजनीतिक दलों को इस अप्रत्यक्ष समझौते के तहत मिलता है जिसमें चुनाव के बाद उनके उचित अनुचित  हितों का ध्यान रखने की जिम्मेदारी सत्ता में आने वाले राजनीतिक दल की होती है। जो दल चुनावी चंदा लेकर सत्ता में नहीं आ पाता वह विपक्ष की भूमिका में रहता है लेकिन विपक्ष में रहते हुए भी उन औघोगिक घरानों, बडी कम्पनियों के हितों की रक्षा करता है जिससे उसने चुनावी चंदा लिया है। इसके मायने साफ है कि राजनीतिक दल बडी रकम लेकर औघोगिक घरानों ,कम्पनियों के हितों की पूर्ति के लिए हमेशा प्रतिबध्द रहते हैं। बडी कम्पनियां टेक्स छूट, मुफत के भाव सरकारी जमीन और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने में जुटी रहती हैं और चुनाव का चंदा खाकर राजनीतिक दल नियम विरूध्द होने वाले कामकाज को देखकर भी अपना मुहं बंद रखते हैं । लगातार चुनाव की प्रक्रिया में बढ रहे खर्च के कारण कोई भी राजनीतिक दल चुनाव में चंदा लेने से इंकार नहीं करता। आज स्थिती यह है कि हमारे देश में कोई भी पार्टी बिना चंदा लिये चुनाव नहीं लड सकती। लगातार मंहगें होते चुनाव ने औघोगिक घरानों, बडी कम्पनियों पर पहले से ज्यादा रकम देने का बोझ डाल दिया है।

चुनावी चंदे के रूप में राजनीतिक दलों को मिलने वाली यह रकम चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता में बडी बाधा साबित हो रही है। इस संबंध में पिछले दिनों जो जानकारी सामने आई है वह बताती है कि राजनीतिक दलों के खाते में चुनावी चंदे की रकम साल दर साल बढती जा रही है। पिछले चार वर्शो में  बडे औघोगिक घरानों, कम्पनियों ने राजनीतिक दलों को 956 करोड से ज्यादा की रकम चुनावी चंदे के रूप में दी है। यह रकम उससे दो गुना है जो कि विगत 8 वर्शो के दौरान विभिन्न पार्टियों को दी गई।

चुनाव सुधार को लेकर काम करने वाली  एसोशिएशन फार डेमोके्रटिक रिफार्म नाम की एक संस्था द्वारा हाल ही में प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट बताती है कि वित्तीय वर्श 2004-05 से वित्तीय वर्श 2011-12 के बीच 8 वर्शो की अवधि में राजनीतिक दलों को 378 करोड रुपए से ज्यादा की राशि दान या चंदे के रूप में मिली । यह रकम बडे औघोगिक घरानों ,कम्पनियों की ओर से दान में दी गई। इसके बाद वित्तीय वर्श 2013-13 से 2015-16 के बीच 4 वर्शो की अवधि में राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा बढकर 950 करोड रुपए से अधिक हो गया। जिन बडे औघोगिक घरानों ,कम्पनियों ने यह पैसा दिया उनमें शुगर,सीमेंट,दवाईयां बनाने वाली कम्पनियां, बिल्डर्स, खनन कम्पनियां विभिन्न टस्ट, समाजसेवा के नाम पर बनाये गये संगठन भी शामिल हें। यह सारा पैसा चुनाव की निष्पक्षता, पारदर्शिता को प्रभावित कर रहा है। जो चुनाव में पैसा लगाते हैं वे बाद में सारे नियम कानूनों को अपने फायदे के लिए उपयोग करना चाहते हें और ऐसा करने के लिए सत्ता पक्ष ही नहीं बल्कि विपक्षी दलों को भी मजबूर करते हैं।

चुनाव की प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता को बढाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने कहा कि चुनाव आयोग सुधार के लिए लगातार विभिन्न स्तरों पर काम कर रहा है। मतदाताओं को चुनाव प्रक्रिया के बारे में जागरूक करने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम चुनावी चंदे में पारदर्शिता चाहते हैं और इस दिशा में प्रभावी कार्यवाही कर भी रहे हैं। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार प्राजंय गुहा ठाकुरता ने चुनाव आयोग द्वारा गठित की जाने वाले पेड न्यूज समितियों में विशय विशेशज्ञ पत्रकारों को महत्व दिये जाने का उल्लेख किया। नेशनल इलेक्षन वॉच संस्था से जुडे डा विपुल मुदगल ने विसिल ब्लोअर प्रोटेक्षन एक्ट को प्रभावी बनाने पर जोर दिया। जम्मू कष्मीर के पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त प्रोफेसर जी आर सूफी ने चुनाव सुधार के लिए उपयोगी और महत्वपूर्ण सुझाव रखे। भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी ष्शाहिद खान ने देश में सासंदों की संख्या बढाने, चुनाव लडने की आयुसीमा घटाकर 21 वर्श करने ,मुख्यमंत्री का चुनाव सीधे जनता द्वारा कराये जाने की मांग की । प्रोफेसर जगदीप छोकर , त्रिलोचन ष्शास्त्री, सेवानिवृत मेजर अनिल वर्मा, सामाजिक काय्रकर्ता रोली शिवहरे , व्यंकटेश नायक परविंदर सिहं, मनमोहन सिहं ऋतिका चैपडा चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने , अपराधियों ,आरोपियों के बारे में आयोग द्वारा त्वरित और कडे निर्णय लेने पर जोर दिया। इस कार्यक्रम में शामिल लगभग सभी वक्ता और भागीदारी करने वाले इस बात पर एकमत थे कि इलेक्टोरल बांड की व्यवस्था लागू नहीं होना चाहिये । इसके लागू होने से भ्रष्टाचार बढेगा और चुनाव की प्रक्रिया में होनी अनियमितताएं बढ जायेगी। इस कार्यक्रम में शामिल कुछ सामाजिक कार्यकतार्ओं,युवा साथियों ने यह भी कहा कि वे इलेक्टोरल बांड के विरोध में जल्द ही देश के विभिन्न राज्यों में बडा अभियान चलायेगें जिसकी शुरूवात दिल्ली से हो गई है।

Source : अमिताभ पाण्डेय